बस तुम मिल जाओ।

क्या लिख दूँ कि तुम पढ़ लो,और क्या कह दूँ कि तुम मुड़ आओ।
कैसे तुम तक रस्सी फेंकू, जिसमे जीवन भर बंध जाओ।
प्रेम चरित के चमक धमक में,मैं घनघोर अंधेरा हूँ,
किस मोम से तुम्हे लिपट लू,कि दीपक बन मुझमे जल जाओ।
जीवन की इस गूढ़ रस में,कौन सा ऐसा इत्र मिला दूँ।
हर पल मेरी सांस में भी,मेरी खुशबू तुम बन आओ,
जैसा तुम सोचो मैं हो जाऊं और प्रेम की ऐसी धारा,
जिसमें मैं,तुम्हे मयस्सर और मुझे बस तुम मिल जाओ।

शशि कान्त दुबे।